Chandra Shekhar Azad Jayanti:- information January 23, 1906, January 23, 1906 ाबरा नामक स्थान पर हुआ। ‘आजाद का जन्मस्थान भाबरा अब ‘आजादनगर’ जाना जाता है। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी एवं मात ा का नाम जगदानी देवी था। उनके पिता ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के थे।
यही गुण चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में म िले थे। 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वह ां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। वहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिय ा था। 1920-21 े जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए । जहां उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, from him ‘
Chandra Shekhar Azad Jayanti
उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने,’ र ‘महात्मा गांधी की जय’ का स्वर बुलंद किया। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए। जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी ‘ । रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काको री षड्यंत्र (1925) आ ंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। January 17, 1928, 1928, 2010, 2010, 2010. . साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली ख ण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे ग िर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो च ंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया।
Chandra Shekhar Azad Jayanti Overview
अहिंसा से मोहभंग और क्रांति का मार्ग
एक बार अदालत वाली कहानी पर वापस लौटते हैं. चंद्रशेखर आज़ाद के जवाब से जज इतना आगबबूला हु आ कि उसने उन्हें 15 min वंला ते रहे, लेकिन जैसे ही 11वीं बार बेंत उनके पीठ पर प ‘
लेकिन महात्मा गांधी की जयकार करने वाले आजाद न े जल्द ही गांधी का दिखाया मार्ग छोड़ दिया. कुछ ही समय बाद चंद्रशेखर को समझ आ गया कि अहिंसा के मार्ग से स्वतंत्रता नहीं मिल सकती. इस बीच, उत्तर प्रदेश में काशी विद्यापीठ क्रां तिकारियों का गढ़ बना हुआ था. इस दल के नेता रामप्रसाद बिस्मिल थे. लिहाजा आजाद भी इस दल में शामिल हो गए.
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भेष बदलने में माहिर थे आज़ाद
चंद्रशेखर आज़ाद के साथी रहे नंदकिशोर निगम अपन ी किताब ‘बलिदान’ में लिखते हैं-
- क्रांति के लिए धन की आवश्यकता थी. इसलिए बिस्मिल ने आजाद को साधुओं के एक मठ में शि ष्य बनाकर भेजा. इसके पीछे उद्देश्य था कि गुरु के मरने के पश्चा त शिष्य बने आजाद गद्दी पर बैठ जाएंगे और मठ के धन का उपयोग क्रांति के कामों में किया जाएगा. आजाद ने इसके लिए अपना सिर मुंडवा कर गेरुआ वस्त ्र धारण कर लिया और गुरु के मरने का इंतजार होने ल गा. धीरे-धीरे समय बीतता गया लेकिन गुरु को कुछ ना हु आ. प्लान फेल होता देख बिस्मिल ने आजाद को वापस बुल ा लिया. उसके बाद धन एकत्रित करने के लिए दूसरा उपाय सोच ा जाने लगा और फिर काकोरी की घटना को अंजाम देने प र सहमति बनी.’
- रामप्रसाद बिस्मिल को विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि लखनऊ से एक ट्रेन में लगभग 30 min सरे स्टेशनों पर बांटने के लिए ले जाए जाते हैं. इस सरकारी राशि को लूटने की योजना पर काम शुरू हो गया. आजाद को जिम्मेदारी मिली कि लूट के बाद रुपये को सुरक्षित लखनऊ तक पहुंचाना. प्लान के मुताबिक काकोरी स्टेशन से कुछ दूरी पर जंजीर खींचकर ट्रेन को रोका गया. फिर उस रकम जंगल के रास्ते लखनऊ पहुंचाया.
- इस घटना को याद करते हुए मन्मथनाथ गुप्त अपनी कि ” श हर में दाखिल हुए. चौक पहुंचने से पहले रुपयों की गठरी बिस्मिल के हवाले कर दी गई. हम दोनों को लखनऊ की कोई खास जानकारी नहीं थी. तभी आज़ाद ने कहा कि क्यों न एक पार्क में सो जाए ं. थोड़ी नींद लेकर हम उठे और जैसे ही बाहर निकले , क अखबार बेचने वाले की आवाज सुनाई दी- काकोरी में ट्रेन डकैती’
- काकोरी की घटना के बाद इसमें शामिल क्रांतिकारि यों की धरपकड़ तेज हो गई. लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद को पकड़ना अंग्रेजों के बस के बाहर था. वह हर बार पुलिस को चकमा देकर बच निकलते थे. इसकी एक खास वजह थी. आजाद हर थोड़े समय के बाद अपनी रहने की जगह बदल द ेते थे और भेष बदलने में वह माहिर थे ही. More information त में झांसी जा पहुंचे. इसके कुछ दिन बाद ही वह झांसी से भी निकल गए और सा धु का भेष बनाकर कुछ दिन के लिए के साथ जंगल में रह ने लगे.
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उधार चुकाने के लिए जौहरी को लूटा
चंद्रशेखर आजाद ने अपने एक मित्र से 6 महीने में वापसी का वादा कर 4 हजार रुपये उधार लिए थे. इस बात को अभी 3 महीने ही बीते थे कि एक दिन वह मित – मांगे. दरअसल, आजाद के उस दोस्त ने भी किसी दूसरे से मां गकर ही पैसे दिए थे. अब वह शख्स रुपये वापसी का दबाव बना रहा था. ” रुपये मिल जाएंगे.” दिल्ली के चांदनी चौक बाजार में लोगों की भीड़ ज ुटी थी. तभी एक जौहरी की दुकान पर एक युवक पहुंचा. देखते ही देखते उस युवक ने जौहरी के माथे पर अपनी पिस्तौल सटा दी. उसके कुछ और साथी भी असलहा लेकर दुकान में पहुंच गए.दुकान से 14 हजार रुपये की लूट हो चुकी थी. ” ” शाम को जब आज़ाद अपने दोस्त को 4 हजार रुपये लौटा ने पहुंचे, तब तक उसे लूट की जानकारी हो चुकी थी.
” ” पूँजीपति गरीब व मजलूम लोगों का खून चूसकर रुपया कमाते हैं. ऐसे में अगर यह रुपया देश के काम आ जाए तो कोई गुन ‘
आजाद की पिस्तौल लेकर चला गया अंग्रेज अफसर
अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आज़ाद पर गोली चल More information औ र बॉवर उसे लेकर इंग्लैंड चला गया. बाद में लंदन में भारतीय उच्चायोग की कोशिश के ब ाद ये पिस्टल 1972 में भtric
शाकाहारी होकर भी खाने लगे अंडा
- चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह बहुत अच्छे दोस्त थ े. आजाद ब्राह्मण परिवार से आते थे. अपनी जिंदगी में उन्होंने रहने के कई स्थान बदल े, लेकिन वह पक्के शाकाहारी थे. हालांकि भगत सिंह से दोस्ती के बाद उन्होंने अं डा खाना शुरू कर दिया था.
- एक बार अ ंडा खाते देखा तो टोक दिया. ‘ ”
- माहौर ठहाका मारकर हंसे. वह जानते थे कि अंडे को फल बताने वाला तर्क भगतस िंह का ही है, तभी वहां भगत सिंह भी पहुंच गए. माहौर और भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद से मजाक कि या तो आजाद बोले- ‘एक तो अंडा खिला रहा है, ऊपर से बा तें बना रहा है.’
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Source: vtt.edu.vn